Thursday, September 11, 2008

श्रम कानून बेशरम संस्थानों पर लागू क्यों नहीं होता?


आज श्री विष्णु वैरागी के ब्लाग पर जाना हुआ जिसमें उन्होंने चर्च के जलाये जाने की घटना और इसकी जांच का उल्लेख किया है


इसी के चलते पता चला कि पुलिस द्वारा एक चौकीदार को पकड़ा गया है जिसको वेतन में सिर्फ 1 हजार प्रतिमाह मिलते थे और इसमें से भी पांच सौ रुपये किसी मद में काट लिये जाते थे पुलिस के अनुसार नवम्बर में इसकी आखिरी किश्त काटने के बाद इसकी नौकरी खत्म करने की बात भी बताई गई है


भारत सरकार ने न्यूनतम वेतन कानून बना रखा है मुझे नहीं मालूम कि मध्यप्रदेश में यह कितना है लेकिन एक हजार जितना चौच का दाना तो कतई नहीं होगा इतने कम वेतन में तो आदमी खुद वे-तन हो जायेगा


शायद श्रम कानून धार्मिक संस्थाओं पर लागू नहीं होते होंगे इस प्रकार एसी संस्थाये जो सारी दुनियां को भला बनने की शिक्षा देते रहते हैं,शोषण करने का अधिकार मिल जाता है आज के युग में एक हजार से भी कम वेतन शोषण नहीं है तो और क्या है


इससे भी दर्दनाक श्री द्विवेदी जी की टिप्पणी जानकर लगा कि सरकारी विभाग भी कुछ एसा ही कर रहे हैं


हो सकता हो कि धार्मिक संस्थानों पर न्यूनतम वेतन की बात से आपकी धार्मिक भावना आहत हुईं हो, माफ कीजिये लेकिन इतने कम वेतन की बात पर मेरी भी भावनायें आहत ही हुई हैं.


क्या इसका कोई इलाज नहीं है?


पुनश्च: ऊपर में बेशरम के स्थान पर बे-श्रम लिखना चाहता था पर बाद में सोचा कि शायद अनजाने में ही सही सही लिख गया हो

3 comments:

Pak Hindustani said...

समाज बदलना बहुत बड़ी मेहनत है

इससे अच्छा तो ब्लाग पढ़ना बन्द कर दीजिये

अनुनाद सिंह said...

चलो अच्चा हुआ कि इसाई मिशनरियों का ये घिनौना पक्ष सामने आ ही गया। अब पता चला कि वे किनकी 'सेवा' करते हैं।

पंचतन्त्र की वो कहानी याद होगी जिसमें एक बूढ़ा शेर सरोवर के किनारे रामनामी चादर ओढ़े और हाँथ में एक सोने का कंगन लेकर किसी 'सुपात्र' की तलाश कर रहा था जिसे वह दान देकर अपने 'पापों' का प्रायश्चित कर सके।

संजय बेंगाणी said...

हाथी के दाँत दिखाने के और तथा खाने के और होते है.